Monday, September 28, 2009

एक संग को अपना खुदा



एक संग को अपना खुदा माना किये थे हम,
यह किसके लिए खुद को दीवाना किये थे हम.


नाखून बन कुरेदता रहा वो मेरे जख्म,
मानिंद-ए-मरहम जिसे जाना किये थे हम.


वक़्त-ए-रुखसत सोचता हूँ, आज उनसे क्या कहूं,
कल भी तो 'मर जायेंगे', ये बहाना किये थे हम.


मैं सजदा करता हूँ जिसे, वो तेरा खुदा नहीं,
बस इस ज़रा सी बात का फ़साना किये थे हम.


अब वो नहीं है इश्क में मरमिटने का जज़्बा,
दिन वो गए, जब खुद को परवाना किये थे हम.

फिर से उस रंग में निखर आओ




फिर से उस रंग में निखर आओ.
आओ, एक बार फिर संवर आओ.


तुम पे कितने ही लोग मरते थे,
कितने दीवाने बने फिरते थे,
वो संगमरमरी सा शोख बदन,
देख कितने ही आहें भरते थे.


फिर से वो जलवा औ असर लाओ,
आओ, एक बार फिर ..........


तुम भी तो थी कुछ दीवानी सी,
कोई अल्हड़ प्रेम कहानी सी,
कभी मासूम, कभी शरीर सी तुम,
कभी बचपन, कभी जवानी सी,


फिर से वो हुस्ने-बेखबर लाओ.
आओ, एक बार फिर..........


क्यूँ आँखों में बस अब पानी है,
कोई हलचल न कुछ रवानी है,
दिल में अब क्यूँ कोई तरंग नहीं,
कितनी खामोश ज़िंदगानी है,


मौजों में कुछ तो अब भंवर लाओ.
आओ, एक बार फिर..........


देखो, वो कंगना तुमको देखता है,
दूर से सुरमा आँखें सेंकता है,
पायल अब भी तुम्हें बुलाती है,
गज़रा नज़रें तुम्हीं पे फेंकता है,


सब कहते हैं, फिर इधर आओ.
आओ, एक बार फिर..............


माना, बस रूप ही सब कुछ तो नहीं,
पर तुम खुद को यूँही भूलो तो नहीं,
कुछ भी हो रंग ज़िंदगानी का,
आज भी तुम हो पहले सी हंसी.


रूप पे अपने फिर से इतराओ,
आओ, एक बार फिर...........


Sunday, September 27, 2009

फिर प्रतीक्षा




आज तेरी फिर प्रतीक्षा, कर रहा बेज़ार मन,
शोलों सी यह चिर प्रतीक्षा, और मेरा अंगार मन.


हुस्न ए सागर की प्रतीक्षा, अपने दिलवर की प्रतीक्षा,
अभी मिलन और फिर प्रतीक्षा, पतझड़ कभी बहार मन.


आहट तेरे तस्सवुर की, है आँखों में यह पानी सा,
रोने में माहिर प्रतीक्षा, अश्कों की बौछार मन.  

Thursday, September 24, 2009

बेकरारी अब भी




दिल पे जैसे कुछ नशा था, आँखों में खुमारी सी रही;
मिल गए तुम फिर भी हमको, बेकरारी सी रही.


कहना चाहूं तुम से ही बस, राज़-ए-दिल, राज़-ए-वफ़ा;
कह दिया सब, फिर भी जैसे पर्दादारी सी रही.


दिल में उसके प्यार था, पर आँख में दुनिया थी बसी;
अब जाना क्यूँ प्यार में उसके, दुनियादारी सी रही.


तब भी अपनी सी लगी, जब गैर की दुल्हन बनी;
कैसे उसे मानूं परायी, जो कल तक हमारी सी रही.


ए खुदा, मालिक मेरे, कर दे बस इतना करम,
अब उसे ही दवा बना, जो अब तक बीमारी सी रही.


Wednesday, September 23, 2009

दीवाने सा हाल

किसी दीवाने सा हाल किये बैठे हैं, 
फिर उनका ख्याल किये बैठे हैं.


दिल अलग मुसीबत किये बैठा है,
वो अलग बवाल किये बैठे हैं.


मालूम था अंज़ाम तो आगाज़ क्यूँ किया,
हम खुद से ये सवाल किये बैठे हैं.

कब आओगे


जब उनसे निगाहें मिलती हैं, 
दिल कहता है क्या पाओगे.
कुछ रंज़ नए, कुछ तंज़ नए,
कोई चोट ही दिल पर खाओगे.


अब उनसे सवाल-ए-उल्फत तुम,
न करना कभी भी ए नादां;
कुछ भी न कहा, कुछ कह भी दिया,
कुछ भी जो हुआ, सह पाओगे.


वो दिल की खलिश, विरह की तपिश,
सपनों का जहां, अश्कों का तूफां;
ये सब आये और लौट गए,
अब तुम बोलो, कब आओगे

Tuesday, September 22, 2009

वही पुरानी प्रेम कहानी

क़दम-क़दम पर इस आँगन के, बिखरी हुई हैं जिसकी निशानी,
आओ सुनाऊँ तुमको फिर से, वही पुरानी प्रेम कहानी.





परियों सी एक शहज़ादी थी, सपनों का एक राजकुंवर था,
दिल से दिल की बातें कहता, आँखों में बैठा प्रेम-भंवर था.
चाहत की थामे हुए डोरी, राजकुंवर की हो गयी गोरी,
तारों की छाँव तले मोहब्बत, यूँही पनपी चोरी-चोरी.
गाँव-गाँव फिर बातें फैलीं, पल-पल कर मुलाकातें फैलीं,
एक दूजे के साथ गुज़ारे, सात जनम के सात इशारे,
यही जगह थी, यही दौर था,
यहीं कहीं मिला करते थे,
एक दीवाना, एक दीवानी.....
 आओ सुनाऊँ तुमको फिर से, वही पुरानी प्रेम कहानी.

क्या मैं अच्छा?





आँखों के इशारे झूठे, रिश्ते और सहारे झूठे,
हैं सारे के सारे झूठे, किसको मानूं किसको जानूं?


दरिया और किनारे झूठे, चाँद दोगला, तारे झूठे,
आँखों के जलधारे झूठे, मुहं तो खोलूं, पर क्यूँ बोलूं ?


सब किस्से और कहानी झूठी, राजा झूठा, रानी झूठी,
प्यार की हर निशानी झूठी, किस पर वारूँ, दिल जो हारूँ?


बातें झूठी, रातें झूठी, उसकी सब सौगातें झूठी,
रोती हुई बरसातें झूठी, हाथ बढाऊँ, धोखा खाऊँ?


सच का दमकता चेहरा झूठा , जुर्म पे बैठा पहरा झूठा,
सूरज का रंग सुनहरा  झूठा, मैं सच्चा, पर क्या मैं अच्छा?

और भी कुछ भी

दस्तक किसी की रात भर सोने नहीं देती,
सुकून था जब घर में दरवाज़ा नहीं था.


जब तक उसे छू कर महसूस न किया,
तब तक इस खलिश का हमें अंदाज़ा नहीं था.


हर ओर खुशी औ अमनो - चैन था,
मेरे देश में तब कोई भी राजा नहीं था.

यूँ ही कुछ भी

मुद्दत हुई कब से यही सोचता हूँ मैं,
है आईना बुरा, या फिर बुरा हूँ मैं.




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