तुम पे कितने ही लोग मरते थे,
कितने दीवाने बने फिरते थे,
वो संगमरमरी सा शोख बदन,
देख कितने ही आहें भरते थे.
फिर से वो जलवा औ असर लाओ,
आओ, एक बार फिर ..........
तुम भी तो थी कुछ दीवानी सी,
कोई अल्हड़ प्रेम कहानी सी,
कभी मासूम, कभी शरीर सी तुम,
कभी बचपन, कभी जवानी सी,
फिर से वो हुस्ने-बेखबर लाओ.
आओ, एक बार फिर..........
क्यूँ आँखों में बस अब पानी है,
कोई हलचल न कुछ रवानी है,
दिल में अब क्यूँ कोई तरंग नहीं,
कितनी खामोश ज़िंदगानी है,
मौजों में कुछ तो अब भंवर लाओ.
आओ, एक बार फिर..........
देखो, वो कंगना तुमको देखता है,
दूर से सुरमा आँखें सेंकता है,
पायल अब भी तुम्हें बुलाती है,
गज़रा नज़रें तुम्हीं पे फेंकता है,
सब कहते हैं, फिर इधर आओ.
आओ, एक बार फिर..............
माना, बस रूप ही सब कुछ तो नहीं,
पर तुम खुद को यूँही भूलो तो नहीं,
कुछ भी हो रंग ज़िंदगानी का,
आज भी तुम हो पहले सी हंसी.
रूप पे अपने फिर से इतराओ,
आओ, एक बार फिर...........