Thursday, October 22, 2009

बातें

ख्वाबों में मेरे कुछ लम्हें आया-जाया करते हैं.


सर्द शबों के वो मंज़र
था तेरा घर या मेरा घर
कुछ याद नहीं पर हम अक्सर
बैठे हुए उस दहलीज़ पर
हाथों में तेरा चेहरा लिए
आँखों में ख्वाब सुनहरा लिए
तुझे पास बिठाने की खातिर
यूँ ही बात बढ़ाने की खातिर
करते रहते थे कुछ बातें
यूँ ही कट जाती थीं रातें


हम आज भी वो बातें सब रातों को सुनाया करते हैं........

Saturday, October 17, 2009

तुम और दिवाली



मेरी आँखों का नूर हो तुम,
सूरज की लाली तुमसे है.
मेरे जीवन की ज्योत हो तुम,
मेरी दिवाली तुमसे है.

Monday, October 5, 2009

क्यूँ मेरी दीवानी तू



तुझे मुझसे है क्या हासिल,
ए जां बता दे मुझको.
क्यूँ मेरी दीवानी तू,
ये जूनून-ए-इश्क क्या है.


ये सोये-सोये दिन और
ये जागी-जागी रातें,
ये गम-ए-हिज्र क्या है,
लुत्फ़-ए-विसाल क्या है.


क्यूँ लगी हैं मेरी खातिर,
यूँ दर पे तेरी आँखें,
तुझे क्या पता है मेरा,
यह एतबार क्या है.


क्यूँ बरसों की आस हमको,
जब पल की खबर नहीं है.
क्यूँ ख्वाब देखें हम फिर,
ख्वाबों की बिसात क्या है.


गर तुमको मोहब्बत हमसे, 
तो अपने दिल से पूछो.
है खुद पे भी भरोसा,
या बस खुदा का आसरा है.

Thursday, October 1, 2009

हसरतें उसकी



कल ख्वाब में देखा था उसके आँचल को,
मुझे निहारती अब तक हैं सलवटें उसकी.


था बिस्तर पे साथ कल एक अश्क तनहा सा,
मुझे पुकारती अब तक हैं करवटें उसकी.


जो खेलती थी बच्चों जैसे मेरे शाने पर,
बड़ी शरारती अब तक हैं वो लटें उसकी.


हरे हैं अब भी जख्म-ए-उल्फत क्यूंकि,
उन्हें दुलराती अब तक हैं हसरतें उसकी.

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