ख्वाबों में मेरे कुछ लम्हें आया-जाया करते हैं.
सर्द शबों के वो मंज़र
था तेरा घर या मेरा घर
कुछ याद नहीं पर हम अक्सर
बैठे हुए उस दहलीज़ पर
हाथों में तेरा चेहरा लिए
आँखों में ख्वाब सुनहरा लिए
तुझे पास बिठाने की खातिर
यूँ ही बात बढ़ाने की खातिर
करते रहते थे कुछ बातें
यूँ ही कट जाती थीं रातें
हम आज भी वो बातें सब रातों को सुनाया करते हैं........