Tuesday, October 30, 2012




कुछ बुरी आदत का वो है शिकार, क्या करें.
हम भी हैं उन आदतों में शुमार, क्या करें.

तुम कहो तो नूर-ए-शम्स लाऊँ नए-नए रंग में,
पर इस शहर में रोशनी का कारोबार क्या करें.

यूँ भी उनकी महफिलों से होश में उठता है कौन,
और उस पर ये मोहब्बत का खुमार, क्या करें.

कहता है वाइज़ रोज़ करना उस खुदा को याद तुम,
करना तो है पर सोचता हूँ, अब बार-बार क्या करें.

कबसे जलाए बैठे हैं हम इन मज़ारों पर च़राग,
मुद्दत हुई आता नहीं कोई सोगवार, क्या करें.

Thursday, October 25, 2012



भाड़ में जाए चाँदी-सोना,
बच्चा चाहे कोई खिलौना.

एक तेरी आँखों के आगे,
पानी भरता जादू-टोना.

इस कारन मुट्ठी ना खोली,
छूटे ना आँचल का कोना.

इश्क के दीवानों की निशानी,
डूब के हँसना, फूट के रोना.

इन भूखे पेटों के सपने,
पत्तल भर चावल, सब्जी भर दोना.

इतनी बड़ी दुनिया के आगे,
क्या मेरा होना ना होना.

रहनुमाओं से सीखा हमने,
फूलों को काँटों में पिरोना.

नींद कहाँ फिर किस्मत में जब,
छूट गया ममता का बिछोना.

मौत का क्या, आनी-जानी है,
तुम अपना दामन ना भिगोना.

इन ग़ज़लों के माने क्या हैं,
गागर में सागर को समोना.

Monday, October 22, 2012


यारों गम-ए-हयात का चर्चा किया ना जाए
अभी इस अधूरी बात का चर्चा किया ना जाए

माशूक वो मेरा सही, नुक्ताचीं भी तो है,
उस से मेरे जज़्बात का चर्चा किया ना जाए

थी गैर संग गुजरी, वो गैर जैसी रात,
किसी गैर से उस रात का चर्चा किया ना जाए

सरे-राह वो जिबह हुआ और सबने पिया लहू,
सभी में बटी खैरात का चर्चा किया ना जाए

सर पे उनके ताज है, पर पांव में बेडियाँ,
यहाँ गर्दिश-ए-हालात का चर्चा किया ना जाए

माना कि नामुराद है पर बेगैरत नहीं फ़िदा,
मुझसे मेरी औकात का चर्चा किया ना जाए

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