Thursday, October 25, 2012



भाड़ में जाए चाँदी-सोना,
बच्चा चाहे कोई खिलौना.

एक तेरी आँखों के आगे,
पानी भरता जादू-टोना.

इस कारन मुट्ठी ना खोली,
छूटे ना आँचल का कोना.

इश्क के दीवानों की निशानी,
डूब के हँसना, फूट के रोना.

इन भूखे पेटों के सपने,
पत्तल भर चावल, सब्जी भर दोना.

इतनी बड़ी दुनिया के आगे,
क्या मेरा होना ना होना.

रहनुमाओं से सीखा हमने,
फूलों को काँटों में पिरोना.

नींद कहाँ फिर किस्मत में जब,
छूट गया ममता का बिछोना.

मौत का क्या, आनी-जानी है,
तुम अपना दामन ना भिगोना.

इन ग़ज़लों के माने क्या हैं,
गागर में सागर को समोना.

1 comments:

Vaishali said...

Wahh..

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कुछ न कहने से भी छिन् जाता है एजाज़-ए-सुख़न,
जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है.

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