उनसे राहत-ए-नज़र का रिश्ता
है.
यह ना समझो जिगर का रिश्ता
है.
रात कटती सनम के पहलू में,
खुदा से बस सहर का रिश्ता
है.
जिसमें खुशबू हो रात-रानी
सी,
समझो बस रात-भर का रिश्ता
है.
इसमें बाकी है ऐतबार-ए-वफ़ा,
ज़रा कच्ची उमर का रिश्ता
है.
वही रिश्ता है मेरा माँ
तुमसे,
जो ख़ाक से शज़र का रिश्ता
है.
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कुछ न कहने से भी छिन् जाता है एजाज़-ए-सुख़न,
जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है.