Monday, October 5, 2009

क्यूँ मेरी दीवानी तू



तुझे मुझसे है क्या हासिल,
ए जां बता दे मुझको.
क्यूँ मेरी दीवानी तू,
ये जूनून-ए-इश्क क्या है.


ये सोये-सोये दिन और
ये जागी-जागी रातें,
ये गम-ए-हिज्र क्या है,
लुत्फ़-ए-विसाल क्या है.


क्यूँ लगी हैं मेरी खातिर,
यूँ दर पे तेरी आँखें,
तुझे क्या पता है मेरा,
यह एतबार क्या है.


क्यूँ बरसों की आस हमको,
जब पल की खबर नहीं है.
क्यूँ ख्वाब देखें हम फिर,
ख्वाबों की बिसात क्या है.


गर तुमको मोहब्बत हमसे, 
तो अपने दिल से पूछो.
है खुद पे भी भरोसा,
या बस खुदा का आसरा है.

4 comments:

विवेक रस्तोगी said...

क्यूँ बरसों की आस हमको,
जब पल की खबर नहीं है.

bahut badia..!!!

ओम आर्य said...

really ......awesome ...........mind,body,andspirit woould unite-this union creates the love you have to give

Mishra Pankaj said...

सुन्दर लगा आपका ब्लॉग देखकर . बधाई स्वीकार करे
पंकज

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर लखते है आप । दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ।

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कुछ न कहने से भी छिन् जाता है एजाज़-ए-सुख़न,
जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है.

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