Thursday, October 22, 2009

बातें

ख्वाबों में मेरे कुछ लम्हें आया-जाया करते हैं.


सर्द शबों के वो मंज़र
था तेरा घर या मेरा घर
कुछ याद नहीं पर हम अक्सर
बैठे हुए उस दहलीज़ पर
हाथों में तेरा चेहरा लिए
आँखों में ख्वाब सुनहरा लिए
तुझे पास बिठाने की खातिर
यूँ ही बात बढ़ाने की खातिर
करते रहते थे कुछ बातें
यूँ ही कट जाती थीं रातें


हम आज भी वो बातें सब रातों को सुनाया करते हैं........

7 comments:

Mishra Pankaj said...

बैठे हुए उस दहलीज़ पर
हाथों में तेरा चेहरा लिए
आँखों में ख्वाब सुनहरा लिए
तुझे पास बिठाने की खातिर
यूँ ही बात बढ़ाने की खातिर
करते रहते थे कुछ बातें
यूँ ही कट जाती थीं रातें

वाह डॉ. साहब , काफी दिन के पश्चात् लेकिन जोरदार कविता ,
धन्यवाद
पंकज

sonal said...

बढिया...आपकी कविता से आँखों के सामने मानो प्रेयसी और प्रियतम के सामने बैठे होने का द्रश्य सजीव हो उठा...

हरकीरत ' हीर' said...

सर्द शबों के वो मंज़र

था तेरा घर या मेरा घर

कुछ याद नहीं पर हम अक्सर

बैठे हुए उस दहलीज़ पर

हाथों में तेरा चेहरा लिए

आँखों में ख्वाब सुनहरा लिए
तुझे पास बिठाने की खातिर
यूँ ही बात बढ़ाने की खातिर
करते रहते थे कुछ बातें
यूँ ही कट जाती थीं रातें
हम आज भी वो बातें सब रातों को सुनाया करते हैं........


waah....!!

Bhot sunder ....!!

ओम आर्य said...

क्या बात है वो ख्वाब सुन्हरा आज भी मन के दहलीज से बाहर नही गया है ......और भी राते जवाँ हो जाती है उन सुनहरे दिनो मे खोकर ..........क्या बात है !

Amit K Sagar said...

बहतु बहुत बहुत बहुत बहुत उम्दा.

डिम्पल मल्होत्रा said...

ख्वाबों में मेरे कुछ लम्हें आया-जाया करते हैं....aise lamhe ruk jaye to behater....

Randhir Singh Suman said...

nice

Post a Comment

कुछ न कहने से भी छिन् जाता है एजाज़-ए-सुख़न,
जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है.

© सर्वाधिकार सुरक्षित