कल रात बेखुदी में उसे क्या क्या कह गया, हैरां है वो दिल का मेरे गुबार देखकर.
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कुछ न कहने से भी छिन् जाता है एजाज़-ए-सुख़न,जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है.
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कुछ न कहने से भी छिन् जाता है एजाज़-ए-सुख़न,
जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है.