किसी दीवाने सा हाल किये बैठे हैं,
फिर उनका ख्याल किये बैठे हैं.
दिल अलग मुसीबत किये बैठा है,
वो अलग बवाल किये बैठे हैं.
मालूम था अंज़ाम तो आगाज़ क्यूँ किया,
हम खुद से ये सवाल किये बैठे हैं.
कल रात बेखुदी में उसे क्या क्या कह गया, हैरां है वो दिल का मेरे गुबार देखकर.
1 comments:
waah !! ye to bat hui na !
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कुछ न कहने से भी छिन् जाता है एजाज़-ए-सुख़न,
जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है.