दस्तक किसी की रात भर सोने नहीं देती,
सुकून था जब घर में दरवाज़ा नहीं था.
जब तक उसे छू कर महसूस न किया,
तब तक इस खलिश का हमें अंदाज़ा नहीं था.
हर ओर खुशी औ अमनो - चैन था,
मेरे देश में तब कोई भी राजा नहीं था.
Tuesday, September 22, 2009
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1 comments:
बहुत सुन्दर रचना । आभार
लिये ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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कुछ न कहने से भी छिन् जाता है एजाज़-ए-सुख़न,
जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है.