आँखों के इशारे झूठे, रिश्ते और सहारे झूठे,
हैं सारे के सारे झूठे, किसको मानूं किसको जानूं?
दरिया और किनारे झूठे, चाँद दोगला, तारे झूठे,
आँखों के जलधारे झूठे, मुहं तो खोलूं, पर क्यूँ बोलूं ?
सब किस्से और कहानी झूठी, राजा झूठा, रानी झूठी,
प्यार की हर निशानी झूठी, किस पर वारूँ, दिल जो हारूँ?
बातें झूठी, रातें झूठी, उसकी सब सौगातें झूठी,
रोती हुई बरसातें झूठी, हाथ बढाऊँ, धोखा खाऊँ?
सच का दमकता चेहरा झूठा , जुर्म पे बैठा पहरा झूठा,
सूरज का रंग सुनहरा झूठा, मैं सच्चा, पर क्या मैं अच्छा?
1 comments:
बहुत सुन्दर रचना ।
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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कुछ न कहने से भी छिन् जाता है एजाज़-ए-सुख़न,
जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है.