जब उनसे निगाहें मिलती हैं,
दिल कहता है क्या पाओगे.
कुछ रंज़ नए, कुछ तंज़ नए,
कोई चोट ही दिल पर खाओगे.
अब उनसे सवाल-ए-उल्फत तुम,
न करना कभी भी ए नादां;
कुछ भी न कहा, कुछ कह भी दिया,
कुछ भी जो हुआ, सह पाओगे.
वो दिल की खलिश, विरह की तपिश,
सपनों का जहां, अश्कों का तूफां;
ये सब आये और लौट गए,
अब तुम बोलो, कब आओगे
2 comments:
बहुत सुन्दर रचना । आभार
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY BHASKAR
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
JAB UNSE NIHAHE MILI
WAHHHHHHHHHH
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कुछ न कहने से भी छिन् जाता है एजाज़-ए-सुख़न,
जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है.